निश्चय एक करो बस मन में,
संरक्षा को नहीं भूलना|
कितनी भी हो अगर शीघ्रता,
इस निश्चय को नहीं तोड़ना||
सेवा के कुछ नियम उन्हें तुम,
'आदेशों का डर' न समझना|
सेवा के कर्मों में सुख है,
खुश होकर निष्पादन करना||
जीवन-म्रत्यु सेतु संरक्षा,
इसका मतलव सदा समझना|
दिल से इसका पालन करके,
हर मकसद में पार उतरना||
गलती तो सबसे होती है,
पर-उपहास कभी नहीं करना|
संरक्षा में कोर-कसर के,
पात्र कभी पर तुम मत बनना||
मैं कुछ कहूँ उसे मत सुनना,
वो कुछ कहें कभी मत करना|
बुद्धिजीव हो अपना निश्चय,
लेकिन याद सदा तुम रखना||
"संरक्षा दर्शन अंक-30 में प्रकाशित"
4 comments:
मैं कुछ कहूँ उसे मत सुनना,
वो कुछ कहें कभी मत करना|
बुद्धिजीव हो अपना निश्चय,
लेकिन याद सदा तुम रखना||
Bahut umda prayaas hai,
Badhai....
गलती तो सबसे होती है,पर-उपहास कभी नहीं करना- very nice.kya aap railways se hain?
Ji han, Railway ki Train chalata hun.
aabhari hun aapka
गलती तो सबसे होती है,पर-उपहास कभी नहीं करना- lajawaab soch ke dhani hain aap,,, Ashok ji,, bahut sundar likha hai.
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