Saturday, January 30, 2010

दुर्घटना का मूल-नाश

दुर्घटना का नामो-निशां मिट जायेगा,
हर मानव यदि संरक्षा को अपनायेगा |
यह देश गगन का ध्रुव-तारा कहलायेगा,
जब दुर्घटना का मूल-नाश हो जायेगा |
चाहे रेल-सफ़र में जाने की तैयारी हो,
या सड़क-मार्ग पर करनी कभी सवारी हो |
आकाश-मार्ग का पवन तुम्हें सहालायेगा,
यदि संरक्षा की सोच जहन में लायेगा |
यह देश गगन....................................||
सोते-जगते, खाते-पीते, घर या बाहर,
है एक चुनौती जीवन का ये भव-सागर |
जब गलती का परिणाम समझ आ जायेगा,
वह पल तुमको यह सागर पार करायेगा |
यह देश गगन..........................................||
दुर्घटना से होती धन-जन-श्रम हानि,
हर मन का क्लेश करे फिर अपनी मन-मानी|
यह चिंता का उद्वेग हमें खा जायेगा,
यदि लापरवाही-नींद-नशा भा जायेगा|
यह देश गगन......................................||
मानव-मन बुद्धि-विवेक भरा बतलाते हैं,
फिर हम अपना कर्त्तव्य भूल क्यों जाते हैं |
बस संरक्षा का नशा अगर चढ़ जायेगा,
तब दुर्घटना का मूल-नाश हो जायेगा |
यह देश गगन का ध्रुव-तारा कहलायेगा,
जब दुर्घटना का मूल-नाश हो जायेगा ||

"संरक्षा दर्शन के अंक-23 में प्रकाशित"

4 comments:

SUNIL TRIPATHI said...

sundar

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर

Ashok Sharma said...

Aapka Bahut Bahut dhanyawad Sunil ji aur Mahendra ji.

Dambar Singh said...

बहुत बहुत सुन्दर