Thursday, February 11, 2010

निश्चय

निश्चय एक करो बस मन में,
संरक्षा को नहीं भूलना|
कितनी भी हो अगर शीघ्रता,
इस निश्चय को नहीं तोड़ना||
सेवा के कुछ नियम उन्हें तुम,
'आदेशों का डर' न समझना|
सेवा के कर्मों में सुख है,
खुश होकर निष्पादन करना||
जीवन-म्रत्यु सेतु संरक्षा,
इसका मतलव सदा समझना|
दिल से इसका पालन करके,
हर मकसद में पार उतरना||
गलती तो सबसे होती है,
पर-उपहास कभी नहीं करना|
संरक्षा में कोर-कसर के,
पात्र कभी पर तुम मत बनना||
मैं कुछ कहूँ उसे मत सुनना,
वो कुछ कहें कभी मत करना|
बुद्धिजीव हो अपना निश्चय,

लेकिन याद सदा तुम रखना||
"संरक्षा दर्शन अंक-30 में प्रकाशित"

Friday, February 5, 2010

संरक्षा-संकल्प

दुर्घटना रुक जायेंगी, करो एक ही काम,
संरक्षा पालन सदा, प्रथम मंत्र लो जान|
नियमों का रखना सदा, अपने मन में ज्ञान,
पालन करना हर घडी, सदा होय गुणगान||
कोहरे में जब द्रष्यता, धूमिल पड़े लखाय,
गति नियंत्रित कीजिये, सिग्नल टेक लगाय|
पैदल की रफ़्तार से, गाढ़ी चलती जाय,
दुर्घटना से देर भली, सबकी जान बचाय||
नींद-नशा तो शत्रु हैं, सदा बंटाते ध्यान,
ज्ञान-तंत्र ढीला करें, होय सबल अज्ञान|
मालिक ने जब दे दिया, भले-बुरे का ज्ञान,
फिर क्यों सब-कुछ जानकर, बनते हो अज्ञान||
दुर्घटना हर पल रहे, बैठी घात लगाय,
तनिक नहीं करती रहम, सब-कुछ देत मिटाय|
संरक्षा की जस घडी, अनदेखी हो जाय,
वही एक पल, ज़िन्दगी देता दुखी बनाय||
संरक्षा के मंत्र यदि, सदा रखोगे याद,
कभी नहीं होगी हँसी, ना होगा अवसाद|
जन-जीवन के चमन की, फ़िज़ां न हो बर्बाद,
सुखमय जीवन का सदा, मिलता रहे प्रसाद||
संरक्षा की राह में, ज्ञान न होता अल्प,
दुर्घटना पर विजय का, दूजा नहीं विकल्प|
सोच-सोच कर सोच में, गुज़र न जाये कल्प,
आओ सब मिलकर करें, संरक्षा-संकल्प||


"संरक्षा दर्शन के अंक-31 में प्रकाशित"