Thursday, November 25, 2010

रेल हमारी

रेल हमारी चलते-चलते, गीत प्यार के गाती है,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, सबका मेल कराती है|
सबकी हर-पल करे सुरक्षा, मात्र-भाव दिखलाती है,
उंच-नीच और जाति-पांति के, सारे भेद मिटाती है|
सबको कर स्वीकार प्रेम से, अपने दिल में रखती है,
सब धर्मों की एक राह, यह रेल हमें दिखलाती है|
होली,.ईद, दिवाली, क्रिसमस, को नहीं अलग समझती है,
हर त्यौहार "पर्व-मानवता", यही भावना रखती है|
नित्य नए लोगों को उनकी, मंजिल तक पहुंचाती है,
जीवन के इस मधुर सफ़र में, रिश्ते नए बनाती है|
एक धर्म हर इंशां का, यह मानवता बतलाती है,
रखना आपस में मेल-जोल, हर-पल यह सबसे कहती है|
क्षेत्र-प्रांत की बात कहाँ, इसे सीमा नहीं सुहाती है,
समझौता सन्देश लिए, उसपार प्रेम बरसाती है|
जीवन एक प्रवास, रेल हमको यह सबक सिखाती है,
जाति-धर्म की छोड़ भावना, मिलकर रहना कहती है|
नहीं पूछती कौम, ऐकता के दर्शन करवाती है,
जीवन के इस अटल-सफ़र में, खुशियाँ सिर्फ लुटाती है|