Thursday, November 25, 2010

रेल हमारी

रेल हमारी चलते-चलते, गीत प्यार के गाती है,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, सबका मेल कराती है|
सबकी हर-पल करे सुरक्षा, मात्र-भाव दिखलाती है,
उंच-नीच और जाति-पांति के, सारे भेद मिटाती है|
सबको कर स्वीकार प्रेम से, अपने दिल में रखती है,
सब धर्मों की एक राह, यह रेल हमें दिखलाती है|
होली,.ईद, दिवाली, क्रिसमस, को नहीं अलग समझती है,
हर त्यौहार "पर्व-मानवता", यही भावना रखती है|
नित्य नए लोगों को उनकी, मंजिल तक पहुंचाती है,
जीवन के इस मधुर सफ़र में, रिश्ते नए बनाती है|
एक धर्म हर इंशां का, यह मानवता बतलाती है,
रखना आपस में मेल-जोल, हर-पल यह सबसे कहती है|
क्षेत्र-प्रांत की बात कहाँ, इसे सीमा नहीं सुहाती है,
समझौता सन्देश लिए, उसपार प्रेम बरसाती है|
जीवन एक प्रवास, रेल हमको यह सबक सिखाती है,
जाति-धर्म की छोड़ भावना, मिलकर रहना कहती है|
नहीं पूछती कौम, ऐकता के दर्शन करवाती है,
जीवन के इस अटल-सफ़र में, खुशियाँ सिर्फ लुटाती है|

Thursday, October 28, 2010

'शून्य दुर्घटना' लक्ष्य

हो 'शून्य दुर्घटना' लक्ष्य तेरा, और संरक्षा का बाण,
नियम सभी हों सैनिक तेरे, और विश्वास कमान|
कभी नहीं डरना जीवन में, लेना मन में ठान,
इश्वर भी तेरे संग रहेगा, बात मेरी ले मान||

जीवन है संघर्ष, मगर संरक्षा कवच सामान,
चक्रव्यूह हैं व्यसन सभी, मत करना तू आवाहन|
दुर्घटना से समर विजय, होना ही तेरा मुकाम,
सदा तेरी जयकार रहेगी, निश्चित लेना जान||

भूल-चूक, लापरवाही, तो सदा करे नुकसान,
दुर्घटना की जननी है, जन-मन को पाप सामान|
सतत कामना कर, इनसे तू मत रखना पहचान,
जीवन में खुशियाँ होंगी, सब पूरे हों अरमान||

लक्ष्य शून्य दुर्घटना का है, मन से करना चिंतन,
अपनी ह़ी जिम्मेदारी, कब समझेगा अंतर्मन|
बहुत हुआ आघात, दिलों में भरा हुआ है क्रंदन,
खुद से पूछो कहाँ कमी, सच कहता है ये दर्पण||

Saturday, October 9, 2010

रेल-ग्रंथ

दुर्घटना से रहित रेल, चलने का सबक सिखाती है,
जी एंड एस आर नहीं सिर्फ, वह रेल ग्रंथ कहलाती है|
स्टेशन और रेल, रेल से परिचित हमें कराती है||
पहला ही अध्याय, रेल की परिभाषा सिखलाती है,
नियमों का रख ज्ञान, हानि कैसे रोकें बतलाती है|
रेल कर्मचारी हो कैसा, दर्शन हमें कराती है||
सिग्नल और उपस्कर उसके, ज्ञान हमें दे जाती है,
गाड़ी कैसे चले, समय और गति प्रतिबन्ध बताती है|
चालक दल का साज़ और कर्त्तव्य बोध करवाती है||
स्टेशन का सफल-नियंत्रण, कार्य-चलन समझाती है,
शंटिंग कैसे करें, पाठ पंचम में बोध कराती है|
दुर्घटना से विषम कार्य में, कैसे बचें सिखाती है||
आग लगे गाड़ी टूटे, पर नहीं डरो तुम कहती है,
 संचालन की पद्यतियां, अध्याय सात में मिलती हैं|
सिग्नल, गाड़ी-संचालन के, नियमों को कह देती है||
पूर्ण-ब्लाक में क्या कैसे हो, अष्टम बोध कराती है,
स्टेशन की श्रेणी के, अनुसार हमें समझाती है|
नवं स्वचल का ज्ञान करा, कर्तव्यों को बतलाती है||
सिंगल और डबल लाइन पर, निर्भय दौड़ो कहती है,
अनुगामी और पायलट-गार्ड, दस-ग्यारह में आती है|
ट्रेन स्टाफ और टिकट पद्यति, बारह में कह जाती है||
केवल एक चले गाड़ी, तेरह अध्याय बताती है,
चौदह में ब्लाक प्रचालन कर, पंद्रह में रेल बिछाती है|
सोलह में सम-पार बने, फाटक-वाला से कहती है||
विद्युत् वाले खंड के नियम, सत्रह में बतलाती है,
अठ्ठारहवां अध्याय सुनो, क्या बचा गया क्या कहती है|
यह रेल की गीता इसीलिए, बस रेल-ग्रंथ बन जाती है||

    "संरक्षा दर्शन के अंक-28 में प्रकाशित"

Monday, September 27, 2010

"संरक्षा-गीत"

संरक्षा प्रहरी वही, सज़ग सदा तैनात,
ऐसे मानव श्रेष्ठ का, सुन्दर सुखद प्रभात||1||

लापरवाही से बड़ा, दूजा नहीं पिसाच|
सज़ग सदा रहना सखा, मौत रही है नाच||2||

संरक्षा उन्नत करो, तन - मन से तुम भ्रात|
संरक्षा उन्नति करे, सदा तुम्हारी तात||3||

ध्यान रखो चलता रहे, चक्का ठीक प्रकार|

अपने इस कर्त्तव्य को, मत जानो तुम भार||4||

ड्यूटी पर आना सदा, कर पूर्ण विश्राम|
थके हुए तन से नहीं, निपटा करते काम||5||

करें यात्रा रेल में, अगणित नित्य नवीन|
संरक्षा उनकी सदा, करना तुम परवीन||6||

ड्यूटी पर पूरा न हो, जब तक विनिमय काज|
तब तक मत जाना कहीं, मन में रख लो आज||7||

संरक्षा सबसे प्रथम, मन में लियो समाय|
संरक्षा तुमको सखा, जीवन भर हर्षाय||8||

नियमों का पालन करें, द्रढ़ता से सुविचार|
मुदित ह्रदय घर जाइए, पुलकित हो परिवार||9||

ठीक न यदि निर्णय लिया, माथे लगे कलंक|
पर्चा उलटा कर दिया, फिर काहे का अंक||10||

ड्यूटी के दौरान तुम, रहना सदा सतर्क|
नियमों का पालन करो, उचित न होते तर्क||11||

याद रखो हर मूल्य पर, दुर्घटना टल जाये|
कहना पड़ता बाद में, मिला बुरा फल हाय||12||

गाड़ी पटरी पर सदा, चले तुम्हारी मीत|
अधरों पर रखना सदा, संरक्षा के गीत||13||

चालक सिग्नल देखकर, निश्चित कर लो बात|
मौत न बैठी हो कहीं, निकट लगाये घात||14||

गाड़ी जब चलती रहे, चालक रखना ध्यान|
सिग्नल ऐसा मित्र है, सदा बचाए जान||15||

चालक वह रणवीर है, आगे लड़ता जाय|
सज़ग सदा रहना सखा, ना नींद नशा छू जाय||16||

स्टेशन मास्टर तेरा, स्टेशन ही तीर्थ|
ऐसे करना कार्य तुम, मिले सदा सत्कीर्ति||17||

याद रखो जब भी कभी, फ़ोन उठाओ हाथ|
स्टेशन का नाम लो, जैसे अंबरनाथ||18||

चाभी रखना पास में, अपने ही अधिकार|
जीवन में तुम पर सखा, नहीं पड़ेगी मार||19||

निज अंकों की पुस्तिका, बड़े काम की चीज़|
सदा रखो अधिकार में, कभी न आवे खीज||20||

आगत सिग्नल तुम स्वयं, बाहर देखो जाय|
सिग्नल डाउन ठीक है, ह्रदय शांत हो जाय||21||

आगत सिग्नल द्वार है, स्टेशन का भाय|
गाड़ी आने पर तुरत, उसको दियो उठाय||22||

केबिन असंतुष्टि की, पड़ जाये जब छाप|
सिग्नल डाउन न करो, उचित यही है बात||23||

कार्य करें अधीन जो, दो निश्चित आदेश|
और सुनिश्चित यह करो, समझे सही सन्देश||24||

काट-छाँट के काम में, मत करना विश्वास|
संचालन के काम में, उचीय नहीं परिहास||25||

लीवर कॉलर का सदा, तुम करना उपयोग|
संरक्षा की बात है, मत जानो कोई रोग||26||

उचित तरीके से सदा, प्रेषित हो सन्देश|
लाइन क्लिअर के समय, रखना ध्यान विशेष||27||

लाइन क्लिअर ठीक है, सही ट्रेन का नाम|
सदा सुनिश्चित यह करो, ठीक हो रहा काम||28||

निजी अंक दोहराइए, तीन तरह से आप|
रखना इस सन्देश की, सदा ह्रदय पर छाप||29||

शर्तें पूरी हों तथा, केबिन हो संतुष्ट|
सिग्नल दिलवाना तभी, कौन हो सके रुष्ट||30||

ब्लोक के उपकरण यदि, जब हो जाएँ खराब|
मत लाना उपयोग में, विनती यही जनाब||31||

जन-धन-श्रम की हानि हो, मन उपजे संताप|
दुर्घटनाओं से बड़ा, और न दूजा पाप||32||

नियम हमारे मित्र हैं, रखो गांठ से बांध|
ड्यूटी पर रहना सज़ग, सोना है अपराध||33||

चलती गाड़ी में कहीं, गरम धुरा यदि होय|
प्रथम परीक्षा के बिना, नहीं चलाना सोय||34||

ताला लग जाये तभी, सिग्नल दियो झुकाय|
यदि ताला आये नहीं, काँटा देखो जाय||35||

निज नियमों की पुस्तकें, रखो नियम अनुसार|
सुन्दर सुखद भविष्य के, सपने हों साकार||36||

संरक्षा धूमिल जभी, दुर्घटना तब होय|
बाबू जी भीतर रहे, ओढ़ चदरिया सोय||37||

कर्तव्यों का बोध है, है नियमों का ज्ञान|
पालन जो करते सदा, उनके हों गुणगान||38||

कुहरा यदि पड़ने लगे, दिन में कभी कभार|
सिग्नल जलवाना तुरत, यही एक उपचार||39||

ऐसे ही मत बैठना, धरे हाथ पर हाथ|
फॉग-पोर्टर भेजना, लिए पटाखा साथ||40||

"संरक्षा दर्शन के अंक-१६ में प्रकाशित"

Sunday, September 26, 2010

"संरक्षा का ज्ञान मात्र"

संरक्षा का ज्ञान मात्र, दुर्घटना दूर भगाएगा|
जब अनजाने भी नियमों का, उल्लंघन ना हो पायेगा||
काम समापन कर घर जाकर, निश्चिन्त हो आराम करो|
बैर-भाव की छोड़ कामना, मिल-जुल कर सब काम करो||
खेल-खेल में काम सफलता, से तेरा हो जाएगा|
संरक्षा का ज्ञान मात्र......................................||
सही समय ड्यूटी पर आना, ईष्ट-देव को शीष झुकाना|
नियमों का आदर करते हुए, सिर्फ काम में ध्यान लगना||
विषम काम का भार भी तुम्हें, कभी थका नहीं पायेगा|
संरक्षा का ज्ञान मात्र.......................................||
मानवता के शत्रु व्यसन, दिल में ये बात बसा लेना|
ज्ञान तंत्र के दुश्मन हैं, इनसे तुम सदा दूर रहना||
गलती से भी गलत काम, कोई तुमसे करा ना पायेगा|
संरक्षा का ज्ञान मात्र.......................................||
कर्म क्षेत्र की खुशहाली, जीवन को भी मंहकाती रहे|
जो हैं तुमसे जुड़े हुए, उन सब में ख़ुशी लुटाती रहे||
कोई दुःख का सबब तेरा, अस्तित्व हिला नहीं पायेगा|
संरक्षा का ज्ञान मात्र.......................................||
लक्ष्मण रेखा हैं नियम सभी, उल्लंघन यदि हो जायेगा|
दुर्घटना सा रावण फिर, अपना उत्पात दिखायेगा||
सुख शांति प्रिया सी सिया तेरी, वो रावण हर ले जाएगा||
संरक्षा का ज्ञान मात्र.......................................||
"संरक्षा दर्शन अंक-३३ में प्रकाशित"

Friday, September 24, 2010

संरक्षा से सुखद यात्रा

संरक्षा से बने यात्रा सुखद, और सम्मान मिले|
यातायात सुरक्षित हो तो, अधरों पर मुस्कान खिले||
गाड़ी चलती रहे सुरक्षित, कोई रुकावट आये ना|
समय नष्ट, जन-धन हानि का, कोई क्लेश सताए ना||
यात्री और कर्मचारी के, दिल में हर्षोल्लास खिले|
यातायात सुरक्षित हो तो..................................||
जन-धन-श्रम की करो सुरक्षा, तन-मन उसमें लगा रहे|
 कभी-कभी मौका मिलाता है, सेवा के हैं लाभ बड़े||
प्रेम-भोव से सेवा करके, हर पल आत्मसम्मान मिले||
यातायात सुरक्षित हो तो..................................||
जब तक हो खुशियाँ बांटो, तुम गम से सदा दूर रहना|
नींद-नशा-लापरवाही के, चक्कर में तुम मत पड़ना||
सजग-सतर्क रहे यदि हर-पल, निशित ही सुख-शांति मिले|
यातायात सुरक्षित हो तो...................................||
सतत करो कोशिश जीवन में,अच्छा कुछ कर जाने की|
आगे बढ़ते रहो सदा, कोई बात नहीं फिर डरने की||
करो प्रतिज्ञा अच्छा सोचो, द्रढ़ता से विश्वास मिले|
यातायात सुरक्षित हो तो....................................||
         "संरक्षा दर्शन के अंक-२७ में प्रकाशित"

मोटरमैन

संरक्षा को नहीं भूलना,
मोटरमैन सदा रख ध्यान|
लाखों लोगों के जीवन की,
ज़िम्मेदारी का है काम||
सिग्नल लाल खड़ी हो गाड़ी,
कभी न करना जल्दी-बाज़ी|
बजे कभी भ्रम की यदि घंटी,
तू उसको लेना पहचान||
संरक्षा को...................
नींद-नशा हैं दुश्मन तेरे,
लापरवाही दिन भार घेरे|
इनसे मत होना हैरान,
बस अपना मकसद पहचान||
संरक्षा को.................
गलती से होती दुर्घटना,
इसका स्वाद हमें नहीं चखना|
सदा ह्रदय में रखना ज्ञान,
दुर्घटना अभिशाप समान||
संरक्षा को......................
 तू ऐसा रणवीर जवान,
जिसके हाथों रहे कमान|
अगर सभी गलती भी कर दें,
तू उसको लेना पहचान||
संरक्षा को.......................
 "संरक्षा दर्शन केअंक-२६ में प्रकाशित"

Thursday, April 1, 2010

सीटी-संकेत

'सीटी' की  भाषा  से हम, सबको  अवगत करवाते हैं,
चार दशमलव पांच शून्य, नियमों का ज्ञान कराते हैं|
 
'छोटी - सीटी  एक' बजे, तो  गाडी चलने  वाली  है,
अगले पिछले  इंजिन के, चालक  की जम्मेदारी है|
 
अगर गार्ड या स्टेशन, सिग्नल एक्सचेंज नहीं करता,
 'दो छोटी - सीटी' की भाषा, में यह  बात बतानी है|
 
'लम्बी - छोटी' गार्ड ब्रेक से मुक्त करो  अपनी गाडी,
स्टेशन  या  बीच  खंड  से, गाडी  चलने  वाली है|
 
'तीन बजे छोटी सीटी', तो गार्ड तुम्हें  बतलाती है,
ब्रेक  लगाओ  पीछे से, नहीं  गाडी  रुकने वाली है|
 
दुर्घटना-अवरोध-खराबी, गाडी नहीं हो चलने वाली,
'चार' बजाकर छोटी  सीटी, प्रोटेक्शन  करवाना है|
 
'लम्बी-लम्बी-छोटी-छोटी', सीटी अगर सुनाई देती,
गार्ड तुरत  तैयारी कर, इंजिन पर  तुमको जाना है|
 
टोकन नहीं मिला है या फिर, प्राधिकार प्रस्थान गलत है,
'छोटी - लम्बी - छोटी'  सीटी, यह  सन्देश  बताती  है|
 
तीन बजे लम्बी सीटी, जब आई बी एस खराब हुआ हो,
स्वचल रोक सिग्नल को भी, जब पार करो यह आती है|
 
कोहरा-गेट-टनल-स्टेशन, 'लगातार लम्बी सीटी' सुन,
प्रोटेक्शन  को गए  व्यक्ति को, भी वापस  आ जाना है|
 
'लम्बी-छोटी-लम्बी-छोटी', गाडी टूट  गयी है  समझो,
रेल - खंड  पर  खंडित  गाडी,  का  सन्देश  सुनती  है|
 
खतरे  की ज़ंजीर  खिंचे, या प्रैसर  काम हो जाए कभी,
'छोटी - छोटी - लम्बी' सीटी, से  सबको  बतलाना  है|
 
सिग्नल अगर खराब मिला, तब सबको यह बतलाना है,
'लम्बी - छोटी - छोटी सीटी', का  संकेत  सुनाना  है|
 
उल्लंघन  है  पार  'तीन लम्बी सीटी'  यह  कहती  है,
'बारबार छोटी सीटी'  खतरे  का  भान  कराती  है|

        "संरक्षा दर्शन के अंक-३२ में प्रकाशित"

Thursday, February 11, 2010

निश्चय

निश्चय एक करो बस मन में,
संरक्षा को नहीं भूलना|
कितनी भी हो अगर शीघ्रता,
इस निश्चय को नहीं तोड़ना||
सेवा के कुछ नियम उन्हें तुम,
'आदेशों का डर' न समझना|
सेवा के कर्मों में सुख है,
खुश होकर निष्पादन करना||
जीवन-म्रत्यु सेतु संरक्षा,
इसका मतलव सदा समझना|
दिल से इसका पालन करके,
हर मकसद में पार उतरना||
गलती तो सबसे होती है,
पर-उपहास कभी नहीं करना|
संरक्षा में कोर-कसर के,
पात्र कभी पर तुम मत बनना||
मैं कुछ कहूँ उसे मत सुनना,
वो कुछ कहें कभी मत करना|
बुद्धिजीव हो अपना निश्चय,

लेकिन याद सदा तुम रखना||
"संरक्षा दर्शन अंक-30 में प्रकाशित"

Friday, February 5, 2010

संरक्षा-संकल्प

दुर्घटना रुक जायेंगी, करो एक ही काम,
संरक्षा पालन सदा, प्रथम मंत्र लो जान|
नियमों का रखना सदा, अपने मन में ज्ञान,
पालन करना हर घडी, सदा होय गुणगान||
कोहरे में जब द्रष्यता, धूमिल पड़े लखाय,
गति नियंत्रित कीजिये, सिग्नल टेक लगाय|
पैदल की रफ़्तार से, गाढ़ी चलती जाय,
दुर्घटना से देर भली, सबकी जान बचाय||
नींद-नशा तो शत्रु हैं, सदा बंटाते ध्यान,
ज्ञान-तंत्र ढीला करें, होय सबल अज्ञान|
मालिक ने जब दे दिया, भले-बुरे का ज्ञान,
फिर क्यों सब-कुछ जानकर, बनते हो अज्ञान||
दुर्घटना हर पल रहे, बैठी घात लगाय,
तनिक नहीं करती रहम, सब-कुछ देत मिटाय|
संरक्षा की जस घडी, अनदेखी हो जाय,
वही एक पल, ज़िन्दगी देता दुखी बनाय||
संरक्षा के मंत्र यदि, सदा रखोगे याद,
कभी नहीं होगी हँसी, ना होगा अवसाद|
जन-जीवन के चमन की, फ़िज़ां न हो बर्बाद,
सुखमय जीवन का सदा, मिलता रहे प्रसाद||
संरक्षा की राह में, ज्ञान न होता अल्प,
दुर्घटना पर विजय का, दूजा नहीं विकल्प|
सोच-सोच कर सोच में, गुज़र न जाये कल्प,
आओ सब मिलकर करें, संरक्षा-संकल्प||


"संरक्षा दर्शन के अंक-31 में प्रकाशित"

Saturday, January 30, 2010

दिल में रखना हर-दम

संरक्षा को समझ प्रेमिका, दिल में रखना हर-दम|
नहीं पडेगा पछताना, सब सुखी रहेंगे हर - दम||
कर  पूरा  विश्राम,  काम  पर जाना  याद रखोगे,
ड्यूटी पर रहकर घर की सब, याद सखा विसरोगे|
संरक्षा  तेरे  दिल  में  फिर, साथ  रहेगी हर-दम||
नहीं पड़ेगा पछताना.........................................||
कर्म सिर्फ है धर्म, कभी तुम भार इसे न समझना,
नियमों के अनुसार काम को, तन्मयता से करना|
संरक्षा तन-मन को तेरे, स्वस्थ रखेगी हर-दम||
नहीं पडेगा पछताना.........................................||
सदा काम  में लापरवाही, सिर्फ  हानि  करती है,
चौकन्ने और सज़ग व्यक्ति से, दुर्घटना डरती है|
लगा रहे दिल संरक्षा से, मुदित ह्रदय हो हर-दम||
नहीं पड़ेगा पछताना.........................................||
कैसे   भी   संरक्षा   से,  सदा   मोहब्बत   करना,
काट-छाँट  के कामों से, मेरे यार  हमेशा  डरना|
जल्दी का फल कभी नहीं, मीठा होता सुन रे मन||
नहीं पड़ेगा पछताना.........................................||

"संरक्षा दर्शन के अंक-20 में प्रकाशित"

रेल साथियो

रेल साथियो सुनो अगर, जीवन को सफल बनाना है,
संरक्षा  को  हरदम - हरपल, सबसे  आगे  रखना  है||
नियत समय पर दिए काम को, सही ढंग से करना है,
ड्यूटी  पर रहते  हुए मित्रो, आलस  कभी  न लाना है|
समय-बद्धता, अनुशासन और नियमों को अपनाना है,
संरक्षा को.......................................................||
रेल चलने की खातिर, सब साथी सदां सजग रहना,
रेल-खंड के हर चप्पे पर, अपनी तेज नज़र रखना|
दुनियां जिस पर करे नाज़, हमें ऐसे रेल चलाना है,
संरक्षा को..................................................||
भारतीय रेल के श्रम-वीरो, ऐसे व्यवहार कुशल बनना,
यात्री-गण या सहकर्मी से, कभी नहीं अनबन करना|
टीम-भावना दिल में रखकर, सारे काम कराना है,
संरक्षा को....................................................||
चालक-संरक्षक इसके तुम, अपना एक ध्येय रखना,
रेल चले तब देश चले, इसका विस्मरण नहीं करना|
कैसे भी हो तुम्हें रेल को, मंजिल तक पहुंचाना है,
संरक्षा को...................................................||
करना गर्व हमेशा लेकिन, अभिमानी नहीं बनना तुम,
ना कोई बड़ा नहीं कोई छोटा, सभी कर्मचारी हैं हम|
सबका ही उद्देश्य एक, मिल-जुलकर रेल चलाना है,
संरक्षा को...................................................||

    "संरक्षा दर्शन के अंक-21 में प्रकाशित"

दुर्घटना का मूल-नाश

दुर्घटना का नामो-निशां मिट जायेगा,
हर मानव यदि संरक्षा को अपनायेगा |
यह देश गगन का ध्रुव-तारा कहलायेगा,
जब दुर्घटना का मूल-नाश हो जायेगा |
चाहे रेल-सफ़र में जाने की तैयारी हो,
या सड़क-मार्ग पर करनी कभी सवारी हो |
आकाश-मार्ग का पवन तुम्हें सहालायेगा,
यदि संरक्षा की सोच जहन में लायेगा |
यह देश गगन....................................||
सोते-जगते, खाते-पीते, घर या बाहर,
है एक चुनौती जीवन का ये भव-सागर |
जब गलती का परिणाम समझ आ जायेगा,
वह पल तुमको यह सागर पार करायेगा |
यह देश गगन..........................................||
दुर्घटना से होती धन-जन-श्रम हानि,
हर मन का क्लेश करे फिर अपनी मन-मानी|
यह चिंता का उद्वेग हमें खा जायेगा,
यदि लापरवाही-नींद-नशा भा जायेगा|
यह देश गगन......................................||
मानव-मन बुद्धि-विवेक भरा बतलाते हैं,
फिर हम अपना कर्त्तव्य भूल क्यों जाते हैं |
बस संरक्षा का नशा अगर चढ़ जायेगा,
तब दुर्घटना का मूल-नाश हो जायेगा |
यह देश गगन का ध्रुव-तारा कहलायेगा,
जब दुर्घटना का मूल-नाश हो जायेगा ||

"संरक्षा दर्शन के अंक-23 में प्रकाशित"

Thursday, January 21, 2010

रेल सफ़र

रेल सफ़र में हर ग्राहक, को मित्र बनाते जायेंगे.
रक्षा   में  उनकी  संरक्षा, हम  अपनाते  जायेंगे..
अगर उन्हें कुछ मुश्किल होगी, उचित राह दिखलायेंगे.
अपनी   कुशल  कार्य-शैली  से, उनका   काम कराएँगे..
प्यार   बांटते  जायेंगे,   ना   कभी    क्रोध   में  आयेंगे.
वाणी  के  अति  मधुर  ढंग  से, अपना   उन्हें बनायेंगे..
रक्षा में उनकी संरक्षा.......................................
सच्चा  रेल-मित्र   होने  का,  पूरा धर्म निभाएंगे.
अपने पाक-साफ़ दामन पर, दाग नहीं लगने देंगे ..
पारदर्शिता रखकर  के हम, सदा  काम करवाएंगे .
हर यात्री को सही सलामत, मंजिल तक पहुचायेंगे ..
रक्षा में उनकी संरक्षा......................................
आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा, कभी न आलस लायेंगे .
नींद, नशा, लापरवाही के, व्यसन गले न लगायेंगे ..
काम   करेंगे    दृढ़ता  से, दुर्घटना   दूर  भगायेंगे .
अच्छा  काम  करेंगे तो, दुनियां   के लोग सराहेंगे ..
रक्षा में उनकी संरक्षा.......................................
दुनियां मानेगी ''लोहा'', हम ऐसा बन दिखलायेंगे .
रेल  हमारी   हम  हैं   इसके, ये  आभास  कराएँगे ..
चक्का  चलता  रहे  सदा, न  कोई   रुकावट लायेंगे .
सकल विश्व में सफल रेल का, परचम हम लहरायेंगे ..
रक्षा में उनकी संरक्षा.........................................


 "संरक्षा दर्शन के अंक-20 में प्रकाशित"

Wednesday, January 20, 2010

दुर्घटना से रहित रेल

दुर्घटना से रहित रेल का, सपना साकार बनायेंगे
इस देश की जीवन रेखा से, दुर्घटना नाम हटायेंगे


नियम
सभी संचालन के, हम हर-पल अमल में लायेंगे

दुर्घटना का नामो-निशां, मिलकर हम सभी मिटायेंगे

हर पल सजग-सतर्क रहें हम, मानव-धर्म निभायेंगे
हर यात्री उसकी मंजिल तक, निर्भयता से पहुंचाएंगे


संरक्षा के नारों से हम, कब तक दिल बहलाएँगे

अब
समय गया है मित्रो, उन सबको अमल में लायेंगे


रेल चले तो देश चले, हम दिल से नहीं भुलायेंगे

संरक्षा
से रेल चला, भारत को सुद्रढ़ बनायेंगे


यह
रेल हमारी पोषक है, हम इसको खूब मान देंगे

इसकी
संरक्षा में अपना, तन-मन हम अर्पण कर देंगे


अब रेल संरक्षा की खातिर, बलिदान तुम्हें करना होगा

तुम बहुत सो चुके हो जग में, लेकिन अब तो जगना होगा


भारतीय रेल के श्रम-वीरो, आगे आकर संकल्प करो

संरक्षा
को गले लगाकर, दुर्घटना को दूर करो


मानवता
की रक्षा के लिए, यह प्रण तुमको करना होगा

हर-पल हर-क्षण संरक्षा को, सबसे आगे रखना होगा


फिर दिन वह दूर नहीं होगा, तुम दुनियां में छा जाओगे

अखिल-विश्व में सफल-रेल का, परचम तुम लहराओगे







"संरक्षा दर्शन के अंक-११ में प्रकाशित"