Friday, December 16, 2011

“मानवता”

हम सबका परिवार एक, क्यों भेद-भाव फिर रखते हो,
अपने ह़ी भाई से इतनी, नफरत कैसे करते हो ?
बातें करते मानवता की, खुद को ग्रेट समझते हो,
फिर क्यों अपने ह़ी लोगों की, पोल खोलते फिरते हो ?
खूब समझते "शक्ति-ऐकता", क्यों फिर इससे वंचित हो,
अपने मन में झांक देखना, कितनी कोशिस करते हो ?
जब सब भाई एक-जाति, और काम एक-सा करते हो,
लाल-तिरंगा-भगवा की, क्यों राजनीति में पड़ते हो ?
सभी संगठन हैं अपने, तुम उनका काम समझते हो,
हम सब "मोटरमैन" प्रथम, क्यों नहीं भावना रखते हो?
यूँ ह़ी दुश्मन बहुत खड़े, पहचान बखूब समझते हो,
अपनों की फिर चुगली कर, क्यों जड़ें खोखली करते हो ?
सर्व-प्रथम सब एक, "रंनिंग-परिवार" की बातें करते हो,
अपना-अपना झंडा लेकर, सहज भटक क्यों जाते हो ?
आओ आज करो यह निश्चय, किसकी वाट जोहते हो,
कौन आएगा समझाने, तुम सबका हाल समझते हो ?
बहुत हुआ आघात अभी तक, हर क्रंदन से परिचित हो,
अब तक हुआ और नहीं हो,क्या अटल प्रतिज्ञा करते हो ?
नहीं बाँटेंगे किसी हाल में, हर दिल में संकल्प ये हो,
खुद से वादा कर लेना, यदि मानवता के रक्षक हो |

2 comments:

Riyaz Patwekar said...

It is a very good poem. I wish if everybody understand it and try to follow it our running staff will be much better

K-LINK HEALTHCARE said...

Thanks a lot Dada...but logon ko samjhana padega varna har koi Kolekar ki tarah pareshan hota rahega.